कोरोनावायरस पैंडेमिक से ज़माने भर में सफरबाज़ों की दुनिया उलट-पुलट हो गई है। ट्रैवल इंडस्ट्री में हड़कंप है, सफर बिखर गए हैं और मंज़िलों पर सन्नाटा है। सीज़न में फुल की तख़्ती लगाए एयरबीएनबी, होटल-होमस्टे वीरान हैं; वॉटर-पार्क, एंटरटेनमेंट पार्क, थियेटर, म्युज़ियम, गैलरियां, कैथेड्रल, मंदिर-मस्जिद, मकबरे, कैफे, बार, रेस्टॉरेंटों में मुर्दानगी छायी है। डिज़्नीलैंड ने कर्मचारियों को छुट्टी पर भेज दिया है, पर्यटन को उकसाने वाले ही अब लोगों को #स्टेहोम #ट्रैवलटुमौरो का पाठ पढ़ाने की मजबूरी से गुजर रहे हैं।
वर्ल्ड ट्रैवल एंड टूरिज़्म काउंसिल ने आखिरकार वो बम गिरा ही दिया जिसका अंदेशा था। डब्ल्यूटीटीसी के मुताबिक, कोरोनावायरस पैंडेमिक के चलते दुनियाभर में ट्रैवल इंडस्ट्री से जुड़ी करीब 10 करोड़ नौकरियां जा सकती हैं और इनमें साढ़े सात करोड़ तो जी20 देशों में होंगी। यानी भारत के पर्यटन उद्योग पर भी भारी खतरा है।
डब्ल्यूटीटीसी की अध्यक्ष एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी ग्लोरिया ग्वेवारा ने कहा, ‘हालात बहुत कम समय में और तेजी से बिगड़े हैं। हमारे आंकड़ों के मुताबिक, ट्रैवल एंड टूरिज़्म सैक्टर में पिछले एक महीने में ही करीब 2.5 करोड़ नौकरियों पर गाज गिरी है। इस वैश्विक महामारी ने पूरे पर्यटन चक्र का आधार ही चौपट कर डाला है।'
महामारी के चलते लॉकडाउन ने पूरी दुनिया में पर्यटन के पहिए को जाम कर दिया है। एयरलाइंस से लेकर मनी एक्सचेंजर तक और टूरिस्ट गाइड से नेचर पार्कों तक की आमदनी पर ताले लटक गए हैं, और किसी को नहीं मालूम कि यात्राओं की दुनिया पर छायी यह मनहूसियत कब दूर होगी। ग्लोरिया का कहना है, ‘यात्रा संसार में आयी यह रुकावट इसलिए भी गंभीर है क्योंकि ट्रैवल एंड टूरिज़्म सैक्टर वैश्विक अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। इसमें सुधार लाए बगैर दुनिया में कहीं भी अर्थव्यवस्था को उबारना आसान नहीं होगा और आने वाले कई सालों तक लाखों लोग आर्थिक और मानसिक तबाही झेलने को अभिशप्त होंगे।'
युनाइटेड नेशंस वर्ल्ड टूरिज़्म ऑर्गेनाइज़ेशन (यूएनडब्ल्यूटीओ) के महासचिव जुराब पोलोलिकाश्विल ने दो टूक कह दिया है- ‘अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर सबसे बुरा हाल टूरिज़्म सैक्टर का है। सरकारों को कोविड-19 पैंडेमिक से खतरे में पड़ी आजीविकाओं को बचाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। सिर्फ मीठे अल्फाज़ों से ही नौकरियां नहीं बचायी जा सकेंगी। उन्होंने सरकारों को सलाह दी है कि ‘यात्राओं पर लगी बंदिशों को, जितना जल्दी हटाया जाना सुरक्षित हो, हटा लिया जाना चाहिए।'
लेकिन यह तय है इस धक्के से उबरने में लंबा वक़्त लगेगा और वापसी की रफ्तार भी धीमी होगी। टूरिज़्म जैसे संवेदनशील उद्योग को 9/11 के बाद पुराना रुतबा हासिल करने में दो साल लगे थे। इसी तरह, सार्स और स्वाइन फ्लू ने भी पर्यटन के दौड़ते पहियों में ब्रेक लगायी थी। कोविड-19 इस लिहाज़ से और भी गंभीर परिणाम लेकर आने वाला है।
पोस्ट-कोविड काल में कैसा होगा सफर
यह अभूतपूर्व संकट है, जिसने दुनियाभर में आयोजनों, त्योहारों, यात्रा अनुभवों, सिनेमा, थियेटर, मेलों, प्रदर्शनियों पर रोक लगा दी है। पिछले 5-7 सालों में पर्यटन सैक्टर की उपलब्धियां, कोविड-19 के असर से मटियामेट होने के कगार पर हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि लॉकडाउन हटने के बाद भी विभिन्न देश कब और किसके लिए अपनी सीमाएं खोलेंगे?
शैंगेन बॉर्डर शेष दुनिया के यात्रियों के लिए अगले दो या तीन महीनों में खुलेंगे? अमरीका कब दुनिया के दूसरे महाद्वीपों के ट्रैवलर्स को अपने यहां आने की इजाज़त देगा? क्या कोविड प्रभावित क्षेत्रों के यात्रियों को क्वारंटाइन में रहना होगा? और क्या वे अपने सफर में इस मियाद को भी शामिल रखने का जोखिम उठा पाएंगे?
जब लॉकडाउन खुलेगा, रेलगाड़ियों और जहाज़ों के इंजन फिर घनघनाएंगे, यात्रियों की आमद होगी, उत्सवों के आमंत्रण होंगे तब क्या पहले की तरह सब सामान्य हो जाएगा?
जिंदगी पर फुर्सत और सब्र हावी होंगे
एक प्रमुख लग्ज़री होटल चेन लैज़र होटेल्स में जनरल मैनेजर अजय करीर कहते हैं, ‘पोस्ट कोविड ट्रैवल की दुनिया काफी बदलेगी। बहुत मुमकिन है कि आने वाले समय में लोगों की जिंदगी में फुर्सत और सब्र जैसे पहलू ज्यादा हावी होंगे, भागता-दौड़ता टूरिज़्म कम होगा।
होटल ब्रैंड भी ‘कस्टमर डिलाइट’ पर ज्यादा ज़ोर देंगे, लिहाज़ा ‘कैंसलेशन पॉलिसी’ काफी लचीली रखी जाएगी। स्थापित ब्रैंड्स रेट कम नहीं करेंगे, लेकिन बुकिंग्स के मामले में ऑफर्स और आकर्षक पैकेज ला सकते हैं। बजट होटल या अपने अस्तित्व को लेकर संकट से जूझ रहे मीडियम रेंज होटल टैरिफ घटाने जैसी मजबूरी से गुजरेंगे।'
‘इस बीच, एक और बड़ा शिफ्ट जो होगा वो यह कि किचन ऑपरेशंस में बड़े पैमाने पर तब्दीली होगी। फ्रैश और ऑर्गेनिक फूड पर ज़्यादा ज़ोर होगा। दूरदराज के बाज़ारों से एग्ज़ॉटिक फलों और सब्जियों की खरीद की बजाय स्थानीय उत्पादकों को तरजीह देने का चलन बढ़ेगा।'
ट्रैवल के तरीकों में बदलाव भी लाजमी हैं
ट्रैवल राइटर और ब्लॉगर पुनीतिंदर कौर सिद्धू कहती हैं, ‘यात्राएं कभी मरती नहीं हैं, यह अस्थायी ब्रेक है और मेरे जैसे कितने ही घुमक्कड़ किसी ‘सुरक्षित’ मंजि़ल पर निकलने को बेताब हैं। सुरक्षा के लिहाज़ से मैं बड़े होटलों की बजाय बुटिक, स्टैंडएलॉन और छोटी प्रॉपर्टी को प्राथमिकता दूंगी।
शुरुआत में मास ट्रांसपोर्ट से हर संभव तरीके से दूर रहने की कोशिश होगी, यानी रोड ट्रिपिंग की वापसी होगी। लेकिन कार रेंटल को लेकर बहुत से लोग शुरु में हिचकेंगे और सैल्फ-ड्राइविंग हॉलीडे को पसंद किया जाएगा। यात्राओं की रफ्तार धीमी ज़रूर रहेगी मगर वे बेहतर तरीके से होंगी। ‘स्लो टूरिज़्म’ और ‘बैकयार्ड टूरिज़्म’ बढ़ेगा।'
इस बीच, कई एयरलाइंस भी अगले महीने से आसमानों में उड़ान भरने की अपनी तैयारियों के संकेत दे रही हैं। पैसेंजर टर्मिनलों और हवाई जहाज़ों में क्रू तथा यात्रियों के लिए मास्क लगाना अनिवार्य होगा और जगह-जगह सैनीटाइज़र की व्यवस्था, कॉन्टैक्टलैस वेब एवं मोबाइल चेक-इन, थर्मल स्क्रीनिंग, स्वास्थ्य घोषणा पत्र, अतिरिक्त चेक-इन काउंटर जैसी शर्तें आम होंगी।
यात्रियों के बीच डिस्टेन्सिंग के लिए हर कतार में सीट खाली रखने जैसी शर्त पर फिलहाल स्थिति बहुत साफ नहीं है। ऐसा हुआ तो खाली सीटों के साथ उड़ान भरने पर होने वाले नुकसान की भरपाई कैसे होगी? क्या टिकटों की कीमतें बढ़ेंगी? या महामारी के डर से घरों में दुबके पैसेंजरों को ललचाने के लिए हवाई खर्च में कटौती की जाएगी?
सवाल बहुत हैं और जवाब समय के गर्भ में छिपे हैं। धीरे-धीरे स्थितियां साफ होंगी मगर इतना तय है कि बेहतर हाइजिन, सैनीटाइज़ेशन, डिस्इंफेक्शन यात्राओं की बहाली का प्रमुख मंत्र रहेगा।
यायावर लेखक और फोटोग्राफर डॉ कायनात काज़ी कहती हैं, ‘जिसके लिए यात्राएं जीने का सामान है, जिसकी रगों में दौड़ती रवानी की तरह है आवारगी, वो और इंतज़ार नहीं कर सकता। कम से कम मैं तो कतई नहीं रुक सकती।
उम्मीद है लॉकडाउन हटने के बाद, घरेलू यात्राओं के रास्ते खुल जाएंगे और मैं फ्लाइट टिकट खरीदने के रोमांच से खुद को रोक नहीं पाऊंगी! अलबत्ता, जब फिर सफर करना शुरू करूंगी तो सावधानियां, सैनीटाइज़र, मास्क और कुछ हद तक सोशल डिस्टेंसिंग की आदतें मेरी हस्ती का सामान बन चुकी होंगी।'
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