मेरे जीवन में पहली बार हुआ कि केदारनाथ के कपाट खुले और मैं मौजूद नहीं था, लेकिन मुझे कानून और परंपरा दोनों का ध्यान रखना था - Sp news expr:class='data:blog.pageType'>

Sp news

Welcome my website my news websites latestnews,news,fastnews,Hindi news, newsletter,newsfeed,khabarinews,

🅰♡♣!! अपना वेबसाइट बनवाने के लिये सम्पर्क करें 6202949095 !!♣♡🅱 !!♥ धन्यवाद ♥!!

Breaking

Friday, 1 May 2020

मेरे जीवन में पहली बार हुआ कि केदारनाथ के कपाट खुले और मैं मौजूद नहीं था, लेकिन मुझे कानून और परंपरा दोनों का ध्यान रखना था

केदारनाथ के कपाट खुल गए हैं। लेकिन कोराेना के चलते इस बार आम यात्रियों के लिए यहां आने पर पाबंदी है। पहली बार ही केदारनाथ के रावल जिनका स्थान गुरु के बराबर है, वह भी कपाट खुलते वक्त मौजूद नहीं थे। रावल भीमाशंकर लिंग के मुताबिक उनके जीवन में ऐसा पहली बार हुआ है। भीमाशंकर लिंग केदारनाथ के 324वें रावल हैं। दक्षिण भारत में उनका जन्म हुआ और महाराष्ट्र के सोलापुर के गुरुकुल में वेदों की पढ़ाई। हर साल रावल महाराष्ट्र से उत्तराखंड आते हैं। वह इन दिनों केदारनाथ से 70किमी दूर ऊखीमठ में हैं और क्वारैंटाइन का पालन कर रहे हैं। उन्होंनेभास्कर से फोन पर बात की -


आप कब से केदारनाथ के रावल हैं?

मैं 2001 से केदारनाथ में रावल के पद पर हूं। ये मंदिर का प्रथम और महत्वपूर्ण पद है। मेरी जिम्मेदारी मंदिर की पूजा व्यवस्थाओं को देखना है। केदारनाथ के रावल पूजा-पाठ नहीं करते, बल्कि उनकी देखरेख में पूजा होती है।

कपाट खुलने की तारीख बदलती तो आप इस परंपरा में शामिल हो सकते थे?

कपाट खुलने की तारीख बदलने पर विचार चल रहा था। मुझे कानून और परंपरा दोनों का ध्यान रखना है। कपाट खुलने की तारीख में बदलाव नहीं चाहता था। इसलिए समय पर ऊखीमठ में आकर क्वारैंटाइनहो गया। 19 अप्रैलकोऊखीमठ पहुंचकरयह मुकुट मंदिर समिति के लोगों को सौंप दिया। 2 मई को क्वारैंटाइन के 14 दिन खत्म होंगे और 3 को केदारनाथ जाऊंगा।

आपके क्वारैंटाइन होने से पूजा और परंपराओं में बदलाव हुआ?
नहीं, रावल पूजा-पाठ नहीं करते, उनकी देख-रेख में पूजा होती है। मेरी गैरमौजूदगी में मुख्य पुजारी शिव शंकर लिंग ने पूजा और परंपराएं पूरी की। क्वारैंटाइन खत्म होने पर वहां जाकर छूटी हुई पूजा करवाएंगे। इसके बाद से मेरे मार्गदर्शन में पूजा होने लगेंगी।

आप महाराष्ट्र में फंसे थे, ऊखीमठ तक कैसे आए?
मैं महाराष्ट्र के नांदेड़ में था। वहां से कार से आया। एक दिन में करीब 1000 किमी का सफर तय किया। बीच में रुक कर खुद ही अपना खाना बनाता और खाता था। पूजा-पाठ भी चलती रही। इस तरह दो दिन में ऊखीमठ पहुंच गया।

क्या आपके लिए क्वारैंटाइन एकांतवास है, कैसे बीतता है आपका दिन ?
एकांतवास और क्वारैंटाइन में अंतर है। दिनभर में करीब 10 से 12 घंटे तक पूजा-पाठ चलती है। आमतौर पर पूजा-पाठ में इतना समय नहीं दे पाते हैं। क्योंकि उस दौरान श्रद्धालुओं और लोगों से मिलना पड़ता है।

ऑनलाइन दर्शन करवाए जा सकते थे, उसका विरोध क्यों हुआ ?
परंपराओं को टूटने से बचाना था, इसलिए ही ऑनलाइन दर्शन का विरोध हुआ। ऑनलाइन दर्शन करवाने से चारधाम यात्रा और ज्यादा प्रभावित हो सकती थी। देश में अलग-अलग आस्था और मत वाले लोग रहते हैं। उनका ध्यान रखते हुए भी ये फैसला लिया।

केदारनाथ को चढ़ने वाला मुकुट आपके पास था, ये परंपरा कब से है ?
ये परंपरा सदियों से चली आ रही है। इसके पीछे आस्था है कि जिन 6 महीनों में केदारनाथ के दर्शन नहीं होते उस समय धार्मिक कार्यक्रमों में रावल इस मुकुट को पहनते हैं। लोग इस मुकुट के दर्शन करते हैं। जिससे उनको केदारनाथ दर्शन का फल मिलता है।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
रावल श्री भीमाशंकर लिंग की देखरेख में ही भगवान केदारनाथ की पूजा होती है। कपाट बंद होने पर भगवान केदारनाथ को चढ़ने वाला मुकुट ये ही पहनते हैं।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2SqL1kQ

No comments:

Post a Comment

Pages